Friday, August 23, 2019

 मेरा नाम तिशा है | में एक हौसला की कहानी जो इस अध्याय में लिखना चाहती हु | यह एक सच्ची घटना है | यह बात है | मेरे साथ पड़ने वाली एक लड़की की जो मेरी सहपाठी थी | हमारी मुलाकात २०१८ अगस्त में  उदयपुर के एल.एल. बी. B.N  कॉलेज में हुई  | जो मुझसे उम्र मे भी छोटी है | वो हमेशा मुझे खुश ही लगती थी | वह अनुछुचित जाती की थी | दिखने में भी ठीक -ठाक थी | COLLAGE  में सब उसे घृणा की नजर से देखते थे | क्यों की न तो दिखने मे वो  अच्छी थी | और ना ही वो रिच फॅमिली से BELONG  करती थी कोई भी उसे पसंद नहीं करता था | लेकिन मेरा तो उसके साथ आना जाना था| क्यों की उस समय मेरे भी उस कॉलेज में कोई फ्रेंड नहीं था | जैसे जैसे में COLLAGE जाने लगी मेरी और भी फ्रेंड बन गयी |  वो दो दिन COLLAGE  आई उसके बाद उसने आना बंद कर दिया| और नहीं उसका काफी दिनों से कॉल आया था मेरे पास | मेने भी उससे बात करने की कोशिश की लेकिन उसका कभी कॉल ही नहीं लगता | फिर जब हमारे इंटरनल EXAM  शुरू होने वाले थे | तब उसका कॉल आया | उसने COLLAGE  के EXAM  के बारे में पूछा  लेकिन मुझे गुस्सा आ रहा था उस पर मेने बोल दिया अब मतलब के लिए कॉल किया तूने में कुछ नहीं बताने वाली फिर उसने मुझसे बहूत मिन्नत की मुझसे  फिर मेने सब बताया  वो मुझे अगले दिन कॉलेज में मिली | वो काफी दुखी  और थकी हुई भी थी | कोई भी उससे बोल नहीं रहा था | वो सबसे बात करने की कोशिश भी करती लेकिन कोई नहीं बोलता मेने उसे समझाया   क्या  जरूरत है किसी से बोलने की में तुम्हे सब बता दूगी | अपना रुतबा रखो कोई बोले तो ठीक है वरना किसी के आगे क्यों हाथ फैलाना | इन बातो से सायद उस पर कोई असर हुआ उसके बाद वो खुद में  मस्त रहती | एक दिन  एग्जाम देकर घर जा रहे थे | तब मेने उससे पूछा तुम परेशान क्यों हो | वो कुछ नहीं बताती बस हस देती | में भी  ज्यादा नहीं पूछती उससे ऐसे ही हमेशा एग्जाम देते घर जाते | इंटरनल एग्जाम का अंतिम दिन था | तब मेने उससे सारी बात पूछी |तब उसने मुझ  पर यकींन  करके अपनी बचपन   से लेकर अब तक की सारी  बात बताई | उसका जन्म १९९५ में हुआ था | वह एक मध्यम  परिवार से थी | उसे  शिक्षा  तो मिली लेकिन  माँता  पिता का प्यार  नहीं मिला |  वह अपने घर से दूर एक हॉस्टल में रहती थी | जब वह पहली क्लास में थी जब  से वो  घर से बहार रही | उसके माँ  पापा  कभी भी उससे  मिलने नहीं आये | स्कूल का  खर्चा उसके मामा  ही देख लेते |  वह  अपने घर  भी जाती तो भी उसे  भाई  बहन की तुलना में कम प्यार  मिलता वो  इन सब बातो से बहुत दुखी थी | वह समझ नहीं पा रही  थी की उसके साथ ही ऐसा  क्यों  हो रहा है | 
                                                वह जैसे जैसे बड़ी हुई समझदार  होती गई | मामा सहारे जी रही थी | अब उसने collage  भी  पास  कर लिया |  इसी बीच उसने  अपने छोटे मोटे काम  करना  शुरू कर दिया |  जैसे   दुसरो  के घरो में जादू पोछा लगाना | अब  collage में उसे एक लड़के से प्यार  हो गया | उन दोनो ने शादी भी कर ली  अब वह सबसे दूर अपने पति  साथ रहने लग गई | इस बात से दोनों  के घर  वाले बहुत गुस्से में थे | लड़के ने  कुछ दिन तो उसका साथ दिया उसे LAW में एडमिशन  भी कराया | लेकिन कुछ दिनों बाद ही वह लड़का उसे छोड़कर अपने परिवार में रहने को चला गया | और दूसरी लड़की  से विवाह की तैयारी करने लगा जहा उसके परिवार वाले चाहते थे | मधु फिर से एक बार टूट चुकी थी | अब उसके पास न तो आगे पड़ने के लिए पैसे  थे और नहीं घर का किराया देने  के लिए | एक दिन उसकी माँ और छोटी बहन वहाँ आई और उसे  गालिया देने लग गई |  और जो उसके पास फ़ोन था  उसे उसके मामा से मिला था | वो भी  उससे  ले लिया उस समय हमारे एग्जाम का अंतिम दिन  था |  अब वह क्या करती उसने एक जॉब शुरू की | जिससे उसे कुछ पैसे मिल जाते दिन रात जॉब भी करती और बचे समय में अपने MAIN  एग्जाम  की पढ़ाई भी करती  |    उसने अपने मामा से भी मदद लेने से मना कर दिया | अब उसने उसके  पति के खिलाफ केस भी जारी कर दिया | महिला विभाग से सहायता लेके | उसने अपने पति से अपनी सेफ्टी के लिए जीवन भर के लिए खर्चे की मांग की | एक वकील भी HIRE किया | उसकी जिद्द और केस के आगे उसके पति को जुकना पड़ा उसे अपनी गलती का एहसास भी हुआ | इसी तहर अब वह अकेली रहकर अपना जीवन बिता रही है | पढ़ाई  भी कर रही है | अब पता नहीं वो कहा है | अंतिम मुलाकात  मेरी उससे LAW प्रथम वर्ष  के अंतिम एग्जाम में हुई थी | कुछ दिनों बाद हमारा रिजल्ट भी आ गया और इतनी मुसीबतो के बाद भी उसके सबसे अछे मार्क्स आये |जो भी उससे घृणा करता था वो सब भी उसका रिजल्ट देख के चकित थे किसी को भी यकीं न  नहीं हो रहा था की वो इतने अच्छे मार्क्स भी ला सकेगी |  लेकिन उसे ये सब बताने केलिए उसके कॉन्टेक्ट मेरे पास में नहीं है |  
  I PROUD OF SHES GIRL  
सारांश :- किसी की भी सकल ,कपड़ो  या उसके हालातो  से उसकी काबिलियत का पता नहीं लगाया जाता | हमेशा इंसान को आगे वाले की सकल नहीं  उसकी काबियत से इंसान को जज करना चाहिए |   
                                                                  
                                                             THE END                                                                 

Sunday, August 4, 2019

हौसले की कहानी

लेखक का परिचय :- लेखिका   का  नाम टीशा वसीटा है |जिनका जन्म १२/०३/१९८७ में हुआ |  टीशा  एक राजस्थान में एक शहर  उदयपुर के पास एक कस्बा जिला राजसमंद कांकरोली में रहने वाली निवासी है  जिसकी शिक्षा  राजसमंद  विधालय और विश्वविधालय से हुई है |इसने B.A  (आर्ट्स ) M.A (ENGLISH LIT ) और MS.C (C.S  ) किया है | और वर्तमान में LL.B II ND YEAR में पठाई  चालू  है | यह एक छोटे से मिडिल क्लास परिवार में रहने वाली है |
इनके पिताजी जो एक कोर्ट में पेशगार पोस्ट पर कार्यरत थे | कुछ समय पहले जब तिशा १८ साल की थी |और १२ TH पास कर चुकी थी |जून का समय था तिशा के COLLAGE  में प्रवेश लेने का समय था | उनही बिच उनके पिताजी का देहांत हो गया | उनके  तीन बहीने और एक भाई है| एक बड़ी बहन जिनका विवाह १६ साल की उम्र में ही हो गया और उनके पति जो कोर्ट में बाबू की पोस्ट पर कार्यरत है |एक बहीन है छोटी है और टीचर की पठाई कर रही  है  | अब समय था उनकी शादी का लेकिन वो जल्दी विवाह नहीं करना चाहती थी |उनकी माँ जो घरेलु औरत है |वो अपने बचो का पालन -पोषण अपने पति की आई हुई पेंशन से ही करती है | इनके पिजाजी की मुर्त्यु के कुछ समय  बाद ही उनके बड़े भाई की पिताजी की जगह पर ही सरकारी नौकरी मिल गई  | उनके २ बचे और पत्नी है | हम सब साथ रहते थे| और परिवार का खर्चा माँ और भाई दोनों मिल कर करते है | जिसमे छोटी बहन की पठाई का खर्चा और तिशा की पठाई का खर्चा भी माँ को ही करना रहता है तिशा भी कभी छोटे मोठे जॉब दुढ़ती रहती लेकिन उनका सपना शहर से बहार जाना था |और  कमाने का था  भाई की इन बात में मनाई थी |इसी बात को लेकर दोनों में बहस भी रहती दोनों आपस में बात भी नहीं करते |तब तिशा ने लिखना शुरू किया | और LL.B  की पठाई भी चालू रखी  वो गोवेर्मेंट जॉब के लिए प्रयाश भी करती रहती | लेकिन हर तरफ से निराश हो रही थी | अब सफर शुरु होता है| लिखने का | 

       यह कहानी एक वास्तविक घटना है | एक ऐसे व्यक्ति पर रचित है | जिसने जिंदगी में कभी भी हार  नहीं मानी हर परिस्तिथियों का सामना किया  और आज भी वो सामना कर रहा है | जिसका अपना खुद का छोटा सा रियल स्टेट का बिसनेस है | 
 अध्याय
                
                यह कहानी शुरू होती है | एक छोटे  से गांव  जो  पाली डिस्ट्रिक में है वहा रहने वाले एक इंसान की जिसका जन्म १२/०७/१९८४ में हुआ |इनका नाम रणजीत चौहान है | इनका जन्म चौहान वंश में हुआ | ये अपने म्मा पापा की दूसरी संतान है |   जिसके ३ भाई है| वैसे तो ये  गांव के रहने वाले है | लेकिन इनके पापा का काम अहमदाबाद में  चल रहा था इसलिए इनके जन्म  के पहले से ही अहमदाबाद में शिफ्ट हो गए थे | इनके पापा एक  driver है | और माँ house wife  इनकी  दयनिय स्थति इतनी अच्छी नहीं थी की इनके तीनो भाइयो को पढ़ाया  जा सके | इनकी फैमिली अहमदाबाद  के छोटे से  एरिया में  रहती थी | इनकी स्थिथि इतनी दयनीय थी की इनको एक समय का अच्छा खाना भी मिल पाना मुश्किल था |  जब भी इनके घर कोई मेहमान आ जाता तो उनके अच्छा खाना बन जाता तो इनको १० दिनों तक अच्छा खाना नहीं मिल पाता था | ऐसे में ३ नो को पढ़ाना संभव नहीं था | फिर भी इनके पापा ने जैसे तैसे ३ नो भाइयो को एक पास की स्कूल में दाखिला करवा  दिया | ३ नो में से रणजीत सबसे होनहार और होशियार था  | उनमे पढ़ने की ललक थी | जब की दोनों भाई इतने होशियार नहीं थे | जब वो ३ साल के हुए तब इनके बड़े भाई  का एक गंभीर बीमारी  के  कारण  निधन हो गया |
 अब घर में ये सबसे बड़े थे | तब इन्हे इतनी समझ नहीं थी | इनके सर पर पड़ने का जूनून सवार था | ये पड़े १०th  क्लास में आये और इनके पापा ने इन्हे घर की जिम्मेदारी से अवगत करा दिया और कहा अब पड़ने से  कुछ नहीं होगा |  कुछ काम शुरू कर दो | लेकिन इन्हे पड़ना भी था | 10th   अच्छे अंको से पास हो गए  इन्होने एक छोटे से चाय के ढाबे पर चाय पिलाने का काम करना शुरू कर दिया |  इससे थोड़ा बहूत पैसा इनके पास आने लग गया | लेकिन इन्हे ऐसा काम करना पसंद नहीं था | एक बात तो  थी इनमें  जहाँ  भी ये जाते अपना अलग से वजूत अपनी छवि छोड़ देते | ऐसा अलग सा  तेज था इनमे और काम में स्फूर्ति भी लेकिन किसी के सामने   झुकना कतई पसंद नहीं था | इनके पापा कही जगह इनके लिए जॉब देखते ये कुछ समय  वहा जॉब करते और भाग जाते | एक किस्सा मुझे याद है | जो उनकी ही जुबानी सुनी थी एक ऑफिस में वो peaon   की जॉब करते थे | जब कोई इंटरशिप में नयाआता  उन्हें वो यही बताते की में यहा का मैनेजर हूँ  | और कई बार तो लोग यकीं भी कर लेते थे |क्यों की इन  का बात करने का तरीका भी ऐसा ही था | इनको किसी की सुनना पसंद नहीं था  मां पापा से इनको पूरा प्यार कभी मिला नही|  फिर भी इन्होने काम किया | और अपनी पढ़ाई  भी करते गए | अब इन्होने १२ th भी पूरी कर ली थी | बड़ी city  में आगे की पठाई कर पाना मुश्किल था | फिर इन्होने H.R का डिप्लॉमा कोर्स किया | २ year का  और अपनी English improve की | फिर कई जगह H.R ऑफिस में इंटरव्यू  दिए | लेकिन सिलेक्शन नहीं हो पाया क्योकि इनकी EDUCATION कम थी| लेकिन  हिम्मत नहीं हारे फिर कई कोशिशों के बाद इन्हे एक अच्छी जगह नौकरी मिल गई | विदेशी tour  भी हो जाता था | उस जॉब में कई समय तक ये बहार विदेश में रहने लगे | धीरे धीरे ये सक्सेस होते गए | इनके पापा की भी इन्कम  बड़ गयी | अब समय था इनकी शादी का  २२ year की उम्र में इनकी शादी भी हो गई | लेकिन इन्हे जिस प्यार की उम्मीद थी वो नहीं मिल पाया | शादी के बाद इनके यहा ३ लड़कीओ ने जन्म लिया | जिम्मेदारिया अब बढ़  गई थी | जॉब भी अच्छी  चल रही थी |  पत्नी से जिस प्यार की उम्मीद थी वो नहीं मिल पाया | उनकी लाइफ में एक लड़की का आना हुआ | जो  अच्छी दोस्त बनी लेकिन वो लड़की सिर्फ इनके पैसो पर ऐश करना चाहती थी | जब जरूरत होती तब इनसे पैसे मांगती | फिर अचानक एक दिन उसने शादी कर ली इनको बताया तक नहीं दोस्ती का भी ख्याल नहीं आया | इस बात पर उनको गुस्सा भी बहुत आया |फिर  ध्यान सिर्फ काम पर ही था | इन्होने ने खूब कमाया अब खुद का फ्लैट अहमदाबाद में बहुत फेमस  एरिया में  ले लिया था | लेकिन इनको  प्यार अभी तक नहीं मिल पाया | फिर एक लड़की जिनसे इनकी दोस्ती social media  पर  से हुई दोनों की understanding अच्छी थी दोनों एक दूसरे को समझने लगे | और खूब बाते करते वो खुद से ज्यादा हमेशा दुसरो का ही सोचा करते थे | उन्होंने  के दोस्त के लिए बहुत कुछ किया उसे जॉब के लिए  प्रेरित किया दोनों  एक दूसरे की दोस्ती से बहुत खुश थे |  अब क्या था एक दिन अचानक जहां वो जॉब कर रहे थे वह company भी बंद हो गई थी | वो कंपनी फ्रॉड थी|  फिर क्या वो वही पहले वही कंडीशन में आगये  थे | क्युकी उन्होंने पैसा बचाना कभी सीखा ही नहीं जॉब से जोभी  पैसा आया वो सारा पैसा लोगो की मदद में या उधारी में दे दिया |पत्नी , बच्चो  और फॅमिली की अच्छी परवरिश में लगा दिया | अब वो खुद उदारी में दुब चुके थे | क्युकी की जब तक नै जॉब नहीं मिलती उनके पास पैसा कहा से आता | अब उन्होंने सोचा कही जॉब करने से अच्छा खुद का एक कारोबार शुरू किया जाये | अब उनका सफर  शुरू होता है |  सबसे पहले उन्हें एक ऑफिस की खोज की खूब दौड़ भाग के बाद उन्हें एक ऑफिस मिल गया |कम दामों में  और अब उन्होंने खुद का कारोबार शुरू किया | कारोबार के लिए खूब दौड़ भाग कर रहे थे | फिर भी कही उनको सफलता नहीं मिल रही थी| उनका काम था रियल स्टेट का  एक दिन  आया की उनकी एक क्लाइंट से डील  फिक्स्ड हो गई | उन्हें ४ लाख का प्रॉफिट हो गया | अब क़्या  था |  उनका काम धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा | और वो दिन दिन सफलता की और बढ़ते गए | काम के पीछे उन्होंने सबसे रिश्ता तोड़ दिया  था न कोई दोस्त  न फॅमिली सिर्फ काम काम  और काम एक ही मकसद था वो अपनी अच्छी दोस्त से भी दूरिया बना ली थी | वह उनसे बात करने की काफी कोशिश करती लेकिन वो उन्हें समय भी नहीं दे पा रहे  थे |उनके काम के बिच में कभी भी उनकी दोस्त नहीं आई |  नहीं उनकी किसी बात का उसे बुरा लगता | वह समज गई थी की उनकी मज़बूरी क्या है |  अब उनका फिर से समय अच्छा आया | अब फिर से उन्होंने सबसे पहले अपने प्यारी दोस्त को याद किया | उससे बात की और अपनी सफलता का जिक्र किया |उस समय उनकी दोस्त बहुत खुश थी की उन्हें में याद तो हूँ | उसने एक शानदार पार्टी उनके लिए  THROW  की | वो दिन था  फ्रेंडशिप का ४ AUG  का |  ये कहानी थी मेरे एक सच्चे और अच्छे दोस्त की जिसने मुसीबत में नहीं एक लेकिन अपने अच्छे समय में सबसे पहले याद किया |  और आज वो मेरी हर मुसीबत में साथ खड़े है और पहले भी खड़े थे | बस कुछ समय ऐसा था की वो दोस्त को समय नहीं दे पा रहे थे | क्यों की उन्हें पता  था वो अभी खुश है | उसके साथ उसकी फॅमिली है |लेकिन आज में SURE  हूँ अगर मुझ पर कोई मुसीबत आये तो वो मेरे साथ खड़े रहेंगे | THANK YOU  MY BEST FRIEND ,THANK YOU COMING IN  MY LI FE ,           ''FRIEND FOREVER''
  

लाइफ में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए | सबसे पहले अपने काम को महत्त्व  देना चाहिए | वही इंसान सफल होता है जो काम को महत्त्व देता है | 



                                                            THE END 
     





Tuesday, July 30, 2019

KALNGI MOTIVATIONA STORY


              

                                   







































































































































   

           

                                  कलंगी 

Background Image, Fantasy, Trees, Lake, Grass, Rush
                                                
लेखक का परिचय :- लेखिका   का  नाम टीशा वशिता है |जिनका जन्म १२/०३/१९८७ में हुआ |  टीशा  एक राजस्थान में एक शहर  उदयपुर के पास एक कस्बा जिला राजसमंद कांकरोली में रहने वाली निवासी है  जिसकी शिक्षा  राजसमंद  विधालय और विश्वविधालय से हुई है |इसने B.A  (आर्ट्स ) M.A (ENGLISH LIT ) और MS.C (C.S  ) किया है | और वर्तमान में LL.B II ND YEAR में पठाई  चालू  है | यह एक छोटे से मिडिल क्लास परिवार में रहने वाली है |
इनके पिताजी जो एक कोर्ट में पेशगार पोस्ट पर कार्यरत थे | कुछ समय पहले जब तिशा १८ साल की थी |और १२ TH पास कर चुकी थी |जून का समय था तिशा के COLLAGE  में प्रवेश लेने का समय था | उनही बिच उनके पिताजी का देहांत हो गया | उनके  तीन बहीने और एक भाई है| एक बड़ी बहन जिनका विवाह १६ साल की उम्र में ही हो गया और उनके पति जो कोर्ट में बाबू की पोस्ट पर कार्यरत है   |एक बहीन  है  छोटी है और टीचर की पठाई कर रही  है  | अब समय था उनकी शादी का लेकिन वो जल्दी विवाह नहीं करना चाहती थी |उनकी माँ जो घरेलु औरत है |वो अपने बचो का पालन -पोषण अपने पति की आई हुई पेंशन से ही करती है | इनके पिजाजी की मुर्त्यु के कुछ समय  बाद ही उनके बड़े भाई की पिताजी की जगह पर ही सरकारी नौकरी मिल गई  | उनके २ बचे और पत्नी है | हम सब साथ रहते थे| और परिवार का खर्चा माँ और भाई दोनों मिल कर करते है | जिसमे छोटी बहन की पठाई का खर्चा और तिशा की पठाई का खर्चा भी माँ को ही करना रहता है तिशा भी कभी छोटे मोठे जॉब दुढ़ती रहती लेकिन उनका सपना शहर से बहार जाना था |और  कमाने का था  भाई की इन बात में मनाई थी |इसी बात को लेकर दोनों में बहस भी रहती दोनों आपस में बात भी नहीं करते |तब तिशा ने लिखना शुरू किया | और LL.B  की पठाई भी चालू रखी  वो गोवेर्मेंट जॉब के लिए प्रयाश भी करती रहती | लेकिन हर तरफ से निराश हो रही थी | अब सफर शुरु होता है|  उनके लिखने का उनकी कहानी कलंगी जो उन्होंने कुछ समय पहले ही लिखना सुरु कि है | तिशा कुछ मोटिवेशनल  सोच भी लिखती है

कहानी का सारांश :- कलंगी जो की  एक बच्ची की दयनीय स्थिति पर दरसाई गई | उसे एक लड़की होने के कारण  पठाई से वचिंत रखा गया फ़िर भी उस लड़की के पठाई के जूनून ने उसे सफल बना दिया |
ये कहानी समाज में होने वाली कुरूतियो को दर्शाती है |

एक समय  था जब में अपने परिवार के साथ गुमने  गयी थी | समय था करीबन 9. 00 बजे  प्रांत काल :  हम अपने  पास के ही पाली शहर में स्थित  नाडोल गांव में प्रसिद्ध आशापूरा माँ के दर्शन के लिए गए हुए थे | हमने वहा के दर्शन किये  पूरा मंदिर घूमे वह बैठ कर भोजन किया | ये समय था करीबन जुलाई  महीने का जिस समय बारिश और गर्मी का मौसम रहता है | उस समय गर्मी भी बहुत लग रही थी |उस  अत्यधिक गर्मी के कारण  घर के सभी लोग परेशान हो गए थे सबको घर आने की जल्दी थी और बच्चे तो जैसे वह रुकने को तैयार ही नहीं थे | और तभी मेरी नजर एक बच्ची पर पढ़ी उसकी उम्र महज ८ साल के करीबन होगी | जो वहा पर आये दर्शार्थियो को घूम घूम कर जल पीला रही थी | तो कही सभी की सेवा कर रही थी | वह बहुत थकी हुई भी थी उसने थोड़ा आराम किया और माँ के चौपाल में जहां  माँ  का भंडारा चलता है वहा बैठ कर खाना खाया वैसे तो वह एक थाली का २० रूपये मूल्य देय करना होता है | लेकिन उस बची से उस समय कोई मूल्य नहीं लिया गया | शायद वो प्रतिदीन वहा आया करती थी | उसने खाना खाया फिर कुछ बचो के साथ खेलने लग गयी| लेकिन एक बात मुझे उसकी बहुत अच्छी लगी की वो खेल से ज्यादा उसका ध्यान  आने वाले राहगीरों पर और पास में जो स्कूल की पठाई चल रही थी वहा पर ज्यादा था |ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो वहा से कुछ पढ़ रही हो फिर कुछ समय बाद वो उस स्कूल के कक्ष के पास बैठ गयी और जो बच्चे सिख रहे थे वो भी सिखने लग गयी |मंदिर में आने वाले राहगीरों की सेवा के बदले उसे जो मूल्य मिला था उन पैसो से उसने एक स्लॉट ख़रीदा स्कूल से चौक ली और लिखना सुरु किया | वह स्कूल एक गोवेर्मेंट स्कूल था तो वह उसे कोई कहने वाला नहीं था | करीबन १ घंटे की पूरी वारदात थी | हमे घर वापिस आने में लेट हो रहा था |लेकिन मेरी नजर ही नहीं हट रही थी| उस बच्ची से जाने एक अलग सी बात थी उस बच्ची में  वो जहां जाती में उसके पीछे जाती |घर वालो पर मेरा गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था | क्युकी में घर जाने को तैयार भी नहीं थी और उस बची के पीछे पीछे में चल रही थी और घर वालो की नजरो से दूर चली गयी थी | कुछ समय बाद मेने उसे रोका एक पेड़ की छाँव में हम दोनों बैठे और उसे पानी पिलाया | और उससे पूछा तुम कहा से आई हो कहा  रहती हो | उसने बड़े ही प्यारे शब्दों में उत्तर दिया की दीदी मेरा घर पास में ही है | मेरे घर में मेरी माँ और मेरे पापा है | उसका सवाल था क्या आप मेरे घर चलेगी और में उसके घर चली गयी जहां  उसकी  माँ उसके पति के खाना बना रही थी |और उसके पति को खाना  परोस रही थी | लेकिन उसका पति उसे अपशब्द बोले जा रहा था | शायद् वो पीये हुआ था | जब मेने घर में जाकर देख तो उसके  पति  का एक हाथ नहीं था | उसी के कारण वो अपनी नौकरी खो बैठा था | उसी के ग़म में उसने पीना सुरु किया था | उसने जब अपनी ही बच्ची  को देखा तो  आग बबूला हो गया | जैसे की उसके सामने उसका दुश्मन आ गया हो | जब मेने उस बच्ची की  माँ से पूछा से सब क्यों हो रहा है ? आप के घर में ये  ही बच्ची है | फिर भी न तो इसे इसके पापा का प्यार मिल रहा और नहीं इसे पठाया जा रहा है | और ऊपर से ये कुछ पैसा लाती है | उसे भी घर में ले लिया जाता है|  ऐसा क्यों किया जा रहा है | इस बच्ची के साथ  और इसके पापा के साथ क्या हुआ | तब उस बच्ची की माँ ने सारी कहानी सुनाई |
                                                       
                                                                      अध्याय  द्वितीय 
                    यहा से शुरू होता है उस बच्ची का द्वितीय अध्याय  जब बच्ची का जन्म हुआ | उसकी माँ की जुबानी  जब उस बच्ची का जन्म हुआ | तब एक हादसा जिसके कारण  उस बच्ची के पिताजी का हाथ चला गया और नौकरी चली गयी | वो दिन था करीबन १९९८  अप्रैल का जब उसके पिता बहुत खुश थे | और अपनी नौकरी से छूटकर घर आ रहे थे | अपने ही बाईक पर  घर पहुँचने ही वाले थे की एक हादसा हुआ | एक बड़ा सा टोला सामने से आकर उनकी बाइक से टकरा गया | और वो बाइक से गिर पड़े | वो अपनी पत्नी से मिलने की जगह अब उन्हें अस्पताल ले जाया गया | अस्पताल ले जाते समय वह मूर्छित अवस्था में थे | जब उन्हें होश  आया तब पता चला उन्होंने अपना एक हाथ खो दिया |  उनके सभी परिवार वाले कही तरह की बाते बनाने लगे | और उस बच्ची को कोसने लगे | बोल रहे थे की वो बच्ची आई और तुम्हारे साथ ये अपशगुण  हो गया | पिताजी  भी उनकी बातो में आ गए  वो भी उनके साथ अपनी बच्ची के साथ साथ अपनी पत्नी को भी कोसने लग गया |  अस्पताल से छूटी  मिलने पर वह अपने घर गया पत्नी से मिला लेकिन बची का मुँह तक नहीं देखा | और उसने बच्ची को मारने का निश्चय किया | लेकिन जब उसकी पत्नी ने उसे बताया की वो किसी और बच्चे को जन्म नहीं दे सकती | और इस बच्ची को कभी भी खुद से दूर नहीं कर सकती आप ऐसा क्यों बोल रहे हो | ये हमारी बच्ची है | बहुत मिनतो के बाद उसका पति मान गया लेकिन फिर भी उसके प्रति उसकी नफ़रत ख़तम नहीं हुई | वह नफ़रत दिन दिन बढ़ती ही जा रही थी | जब वह अगले दिन अपने ऑफिस गया तब वहा भी उसे नौकरी पर आने से मन्ना कर दिया गया | क्यों की वह अपाहिज था | इस बात से उसकी नफ़रत  गयी  उसने कुछ दोस्तों के साथ पीना शुरू कर दिया | घर आकर पत्नी को पीटना शुरू कर देता था | घर की परिस्तिथि दिन दिन बिगड़ती जा रही  थी | उधर बच्ची की उम्र बढ़ती जा रही थी | उसकी पत्नी ने छोटा मोटा काम शुरू कर दिया मजदूरी वाला | जिससे घर का खर्चा चल रहा था | उस खर्चे में वो बच्ची को पढ़ा नहीं सकती थी | लेकिन जितना उसे आता था उतना उसने उसे सीखने पड़ाने की कोशिश करती रही |  फिर धीरे धीरे वो समय आ गया जब वह ८ वर्ष की हो गयी  | अब उसकी माँ की तबियत भी बिगड़ने लग गयी थी | तो वो माँ के साथ घर के और बहार के कामो में हाथ बटाने  लग गयी | जैसे जैसे वो बड़ी हुई उसके मन में पड़ने की ललक और लोगो की सेवा का भाव मन में पनपने लगा | लेकिन एक बाद उसकी अजीब थी वो मंदिर तो आती लेकिन कभी माँ के दर्शन नहीं करती क्यों की उसका मानना था की इंसान को काम करने से सब कुछ मिलता है भगवान् की पूजा करने से नहीं यथार्थ  ''अपने कर्म करने से '' सब प्राप्त होता है भगवान् भी ''  इतनी सी बच्ची की ये बात मानो मन में घर कर गयी हो | फिर क्या था ? अब समय था।.....
                                                                 तीसरा अध्याय   

                                     यह से बच्ची का सफर शुरू होता है | जब लेखिका उसे अपने साथ ले जाने का निश्चय कर लेती है |  जब मेने उसकी माँ से खा अब में इसे अपने साथ ले जा रही हूँ | और इसे पढ़ाना  चाहती हूँ | पहले तो उसकी माँ ने बहुत आना कानी की  की में इसे आपके साथ नहीं भेज सकती | लेकिन मेरी लाखो मिनतो के बाद उसकी माँ ने हा कर दी | में उस बच्ची को अपने साथ अपने साथ ले आई मेरे घर वालो ने इस बात पर मुझे कोसा डाटा भी लेकिन सब मान गए | उस बच्ची का एक अच्छे से विद्यालय में एडमिशन कराया गया | चौकाने वाली एक बात तो यह थी उसकी की जब स्कूल में उसका छोटा सा इंग्लिश में टेस्ट लिया गए उसमे वो पास हो गयी सारे आंसर इंग्लिश में दिए | मेरी आँखें  उसे देखती रह गयी | धीरे धीरे वो पड़ती गयी और आगे बढ़ती गयी हर क्लास में  प्रथम  आती | वो हमेशा  अपनी माँ को याद करती थी सप्ताह में एक बार  में उसे मिलने ले भी जाती लेकिन कभी वो वह रुकने की जिद्द नहीं करती | अब यह १२ TH  क्लास में आ गयी थी | और अब इसके सपने भी बड़े होते गए उसने अभी से अपना कैरियर  बनाने का सोच लिया था | बी.ए कला में  विश्व विद्यालय   में टोप भी कर लिया था | और B.A  के अंतिम  वर्ष में  उसने IAS का एग्जाम दिया |  वो आईएएस का प्री भी पास कर लिया | मैन्स  भी  क्लियर ,इंटरव्यू  भी क्लियर कर चुकी थी अब समय आ गए उसके आईएएस अफसर बनाने का | वह ट्रैनिग कर के जब ऑफिस र वर्दी में आई तब उसको देख के दिल जैसे खुश हो गया | तब वो अपने पापा और माँ से मिलने अपने घर गई और पापा नहीं उस पर गर्व करने लग गए | और उसकी माँ तो जैसे खुसी से भी नहीं समा रही थी अब वो ख़ुशी ख़ुशी अपने परिवार के साथ रहने लगी और अब जाकर उसने माँ आशापूरा माँ के चरणों में अपना शीश झुकाया  | और बोलै भी हु अपने कर्मो से अपनी मेहनत से |
यहां ख़तम होता है | मेरा सफर  का सफर ख़तम |


कहानी का शिक्षण ;- मेहनत का फल देर से सही मगर मीठा होता है | सफल वही होता है जिसमे कुछ करने का जूनून हो|

http://motgiki.blogspot.com